आचार्य रामदेव चले गये। आचार्य जी आर्य समाज के एक प्रसिद्ध नेता और कार्यकर्ता थे। स्वामी श्रद्धानन्द जी के बाद ही काँगड़ी-गुरुकुल के निर्माता थे। जहाँ तक मई जनता हूँ, वे स्वामी जी के दाहिने हाथ थे. शिक्षण-शास्त्री के तौर पर वे बड़े लोकप्रय थे. पिछले कुछ समय से वे अपने स्वाभाविक जोश के साथ देहरादून के कन्या-गुरुकुल के संचालन कार्य में पड़ गए थे, और कुमारी विद्यावती के पथ-प्रदर्शक और सहारा बन गए थे। जब तक जिए वे ही इनके लिए रिप्या इकठ्ठा करके लाते थे। इनको संस्था के आर्थिक पहलू की कुछ भी चिंता करनी पड़ती थी।मैं जानता हूँ की उनकी मृत्यु से इन्हे और इनकी संस्था को कितनी असहनीय हानि पहुंची है। जो लोग स्वर्गीय आचार्य जी को जानते हैं, जो स्त्री-शिक्षा का महत्व समझते हैं, और जिन्हे कुमारी विद्यावती और उनकी संस्था का कद्द मालूम है, उन्हें अब चाहिए की गुरुकुल को सा के लिए आर्थिक कष्ट से मुक्त करदें। परलोकवासी आचार्य जी के लिए इस तरह का गहन-संग्रह अत्यंत उपयुक्त समरका होगा।

सेगांव, २५ – १२ – ३९। . मोहनदास करमचन्द गांधी

यह दुःखों का भार भीषण, मूक यह चीत्कार भीषण,

किन्तु आँसू कीनदी में आज मत निज को, हृदय खो

रो न, मत मेरे हृदय रो।

सौख्य में अब तक रहा है तू, स्वर्ग सपनों में बहा तू ,

आज नंगी वास्तविकता देख मत दर क्र विमुख हो।

रो न, मत मेरे हृदय रो।

बस, जरा मुस्करा दे, पागलों -सा खिल खिला दे,

देख फिर ये दुख न घेरे रह सकेंगे अधिक तुझको,

रो न, मत मेरे हृदय रो।

श्री सत्यभूषण योगी वेदालङ्कार